स्वामी विवेकानंद
हजारों ठोकरें खाने के बाद ही एक अच्छे चरित्र का निर्माण होता है।
हजारों ठोकरें खाने के बाद ही एक अच्छे चरित्र का निर्माण होता है।
करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आसकर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास ||
अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना…
आपके साथ अब तक जो हुआ अच्छे के लिए हुआ, आगे जो कुछ होगा अच्छे के लिए होगा, जो हो रहा हैं, वो भी अच्छे के लिए हो रहा हैं,…
वाणी ऐसी बोलिये , मन का आपा खोय।औरन को शीतल करे , आपहु शीतल होय।।
रहिमन चुप हो बैठिये , देखि दिनन के फेर।जब नीके दिन आइहें , बनत न लगिहैं देर।।
रूठे सुजन मनाइए , जो रूठे सौ बार |रहिमन फिरि फिरि पोइए , टूटे मुक्ता हार ||
रहिमन धागा प्रेम का , मत तोरो चटकाय | टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय ||
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि | जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि ||
किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये – आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।