रहीम दास जी
वाणी ऐसी बोलिये , मन का आपा खोय।औरन को शीतल करे , आपहु शीतल होय।।
वाणी ऐसी बोलिये , मन का आपा खोय।औरन को शीतल करे , आपहु शीतल होय।।
रहिमन चुप हो बैठिये , देखि दिनन के फेर।जब नीके दिन आइहें , बनत न लगिहैं देर।।
रूठे सुजन मनाइए , जो रूठे सौ बार |रहिमन फिरि फिरि पोइए , टूटे मुक्ता हार ||
रहिमन धागा प्रेम का , मत तोरो चटकाय | टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय ||
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि | जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि ||