शिशुओं में पेट दर्द की समस्या होना एक आम समस्या है। अगर कई बार शिशु को दूध पिलाने के बाद डकार न दिवा सकें तो शिशु को पेट दर्द की समस्या हो सकती है शिशु का पाचन तंत्र ठोस/तरल भोजन को डाइजेस्ट करने के तैयार हो रहा होता है, इसलिए अक्सर शिशु को गैस, रिफ्लक्स, एसिडिटी, दस्त, उल्टी, और कब्ज आदि की समस्या से पीड़ित रहते हैं। शिशु की पेट दर्द होने के कई कारण हो सकते हैं।शिशुओं के पेट दर्द की समस्या होने के कुछ कारण इस प्रकार है –
- गैस होना – कभी न कभी हर शिशु को गैस के कारण पेट में दर्द होता है, उसे चाहे स्तनपान कराया जाता हो या बोतल से दूध पिलाया जाता हो। पेट दर्द की समस्या शिशुओं को उनके अविकसित पाचन तंत्र के कारण होती है।
- गलत तरीके से दूध पिलाना – अगर शिशु को दूध पिलाते हुए माँ के स्तन या दूध की बोतल को गलत ढंग से मुँह में पकड़ा हुआ हो, तो वह दूध के साथ बहुत अधिक हवा अंदर जाने के कारण उसे बाद में पेट दर्द होता है।
- अधिक मात्रा मे आहार देना – कई बार अपने बच्चे को बहुत अधिक भोजन खिलाने के कारण उन्हें स्वास्थ्य संबंधी अनेक परेशानियां हो सकती है, जैसे पेट फूलना और पेट दर्द, और उल्टी आदि।
- कुछ खाद्य पदार्थों के एलर्जी होने से – कई बार कुछ शिशुओं को फार्मूला दूध या कुछ विशिष्ट खाद्य पदार्थों के सेवन से एलर्जी हो सकती है।
- लैक्टोज की मात्रा अधिक होने के कारण – अगर शिशु को लैक्टोज से भरपूर दूध पिलाया जाता है जिसमे वसा में कम होता है इसके कारण शिशु को पेट दर्द की समस्या होने लगती है।
- अविकसित पाचन तंत्र होने के कारण – शिशुओं के पाचन तंत्र अविकसित होने के कारण पेट दर्द हो सकता है। उनके माइक्रोफ्लोरा (पेट के अंदर रहने वाले अद्वितीय सूक्ष्मजीव), जो पाचन प्रक्रिया को सही करने में मदद करते हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करते हैं।
- गैस पैदा करने वाली सब्जियां खाने से – अगर शिशु को दूध पिलाने वाली माँ बीन्स फूलगोभी, प्याज और पत्तागोभी जैसी सब्जियों का सेवन करती है तो स्तनपान करने वाले शिशुओं में भी गैस की समस्या हो जाती है।
- कब्ज – कई बार बच्चे सही से खाना नहीं खाते और कई बार पानी की कमी के कारण उन्हें कब्ज की समस्या होने लगती है, जिसके कारण पेट दर्द होता है।
- रिफ्लक्स – कई बार एक और तीन महीने की उम्र के बीच के शिशु आम तौर पर खिलाने के तुरंत बाद उन्होंने जो भी खाया होता है, उसका थोड़ा सा हिस्सा बाहर निकाल देते हैं। इसका कारण शिशु की भोजन नली और पेट के बीच के वाल्व का पूरी तरह से विकसित न होना होता है। इसके अलावा ‘लार’ का भी मुंह से वापस गले में जाने से भी पेट में दर्द होता है।
- उदरशूल (कॉलिक) – कई बार यदि बच्चे की आंतों में कोई समस्या है, या अत्यधिक हवा है, तो इस कारण से भी पेट में दर्द हो सकता है।
तो ये थे शिशु के पेट दर्द होने के कारण ,अब इसके उपचार के लिए हमें इन उपायों को अपनाना चाहिए –
- सरसों के तेल से मालिश – अपने शिशु को पीठ के बल लिटाकर सरसों के तेल से धीरे-धीरे पेट की मालिश करनी चाहिए , इसे बच्चे की नाभि के चारों ओर लगाएं। ऐसा करने से यह पाचन तंत्र को उत्तेजित करने और बच्चे के पेट में फंसी हुई गैस को हटाने में मदद करता है हर दिन बच्चे की मालिश करना काफी जरूरी है।
- डकार दिलाना – अपने शिशु को दूध देने के बाद पीठ पर धीरे से थपकी देकर डकार दिलवाना बहुत जरूरी है, तब उसका सिर आपके कंधे पर टिका हुआ होना चाहिए। यदि शिशु को आसानी से डकार नहीं आता तो ‘फुटबॉल पकड़’ का प्रयास करना चाहिए। उसे अपनी बाँह के आगे के भाग में उल्टा करके लिटाकर उसकी टांगें अपनी कुहनी पर फैला कर रखें और उसकी ठोड़ी को अपने हाथ पर टिकाएं और पीठ को सहलाते हुए कोमल दबाव डालें। इससे वह अतिरिक्त हवा निकल जानी चाहिए जो फीडिंग के दौरान अंदर चली गई हो।
- हींग – एक चुटकी हींग को गर्म पानी में घोलें। इसे हल्का गुनगुना रखते हुए बच्चे की नाभि के चारों ओर लगाएं । ऐसा करने से पेट दर्द को कम होता है।
- गर्म सिकाई – पेट दर्द के कारण रोते हुए अपने बच्चे के पेट पर धीरे से दबाते हुए गर्म सिकाई करने से ये समस्या दूर होती है।
- साइकिल चलाना – अपने शिशु को पीठ के बल लेटाकर उसकी छोटी- छोटी टांगों को साइकिल चलाने की तरह आगे-पीछे करने से पेट दर्द दूर होता है। इस तरह पैर घुमाने से उसके पेट से गैस निकलने और दर्द कम होने में मदद मिलती है।
- फुट रिफ्लेक्सोलॉजी – इसके लिए शिशु के पेट दर्द को दूर करने के लिए उनके पेट और पैर के तलवों की मालिश करनी चाहिए, उनके पेट का क्षेत्र बाएं पैर के केंद्रीय वृत्त पर होता है। इसलिए बच्चे के बाएं पैर को अपने दाहिने हाथ की हथेली पर रखें और उसके पंजे से नीचे के भाग को सहारा देते हुए, अपने अंगूठे से संतुलित दबाव दें। यह बच्चे को आराम पाने और पेट दर्द को कम करने में मदद करेगा।
तो हम कह सकते हैं कि अपने शिशु के पेट दर्द को दूर करने के लिए अपने शिशु के पेट और पैर के तलवो की मालिश करनी चाहिए ,इसके अलावा उन्हें सौंफ, शहद, अदरक का पानी, पेपरमिंट चाय आदि का सेवन माँ को करना चाहिए ताकि शिशु को दूध पीने के बाद पेट दर्द की समस्या न हो। शिशु के लिए हमेशा प्राकृतिक उपचार ही सबसे सही रहता है इससे उसके छोटे और नाज़ुक तंत्र को किसी बाहरी हानिकारक तत्व से नुकसान न पहुँचे ।