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“ गुरू बिनु ऐसी कौन करै। माला-तिलक मनोहर बाना, लै सिर छत्र धरै। भवसागर तै बूडत राखै, दीपक हाथ धरै। सूर स्याम गुरू ऐसौ समरथ, छिन मैं ले उधरे।

सूरदास

“गुरू बिनु ऐसी कौन करै। माला-तिलक मनोहर बाना, लै सिर छत्र धरै। भवसागर तै बूडत राखै, दीपक हाथ धरै। सूर स्याम गुरू ऐसौ समरथ, छिन मैं ले उधरे।”

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